केन्द्र सरकार और रिजर्व बैंक रुपये की गिरावट पर लगाम लगाने के लिए विदेश में रह रहे भारतीय नागरिकों का सहारा लेने की तैयारी कर रहे हैं।
इस कदम से सरकार को उम्मीद है कि वह अपने चालू खाता घाटे को कम कर सकेगी। गौरतलब है कि केन्द्रीय बैंक ने इससे पहले 2013 के दौरान अप्रवासी भारतियों की मदद ली थी और रुपये में डॉलर के मुकाबले दर्ज हो रही लगातार गिरावट को संभालने में सफलता पाई थी।
आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान यूपीए सरकार औऱ केन्द्रीय बैंक ने अप्रवासी भारतीयों से लगभग 34 बिलियन डॉलर के मूल्य का करेंसी स्वैप किया था और रुपये की गिरावट को रोकने में सफलता पाई थी। इस स्कीम के जरिए आरबीआई विदेश में बैठे भारतीय नागरिकों से सस्ते दर पर डॉलर खरीदती है।
गौरतलब है कि बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच की ब्रोकरेज फर्म सीएलएसए ने भी वकालत की है कि रुपये को संभालने के लिए भारत एक बार फिर 2013 की तरह डॉलर डिपॉजिट स्कीम का सहारा लेते हुए 30 से 35 बिलियन डॉलर बटोर सकती है। इस कदम से जहां रुपये की गिरावट पर लगाम लगेगी वहीं केन्द्र सरकार को अपना चालू खाता घाटा भी कम करने में मदद मिलेगी।
अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रेड वॉर और इसके चलते वैश्विक स्तर पर लोगों का डॉलर पर बढ़ता भरोसा रुपये की इस गिरावट के लिए सबसे बड़े कारण बताए जा रहे हैं। वैश्विक स्तर पर इस ट्रेड वॉर के चलते लगातार डॉलर में दुनिया का भरोसा बढ़ रहा है और डॉलर की जमकर खरीदारी का जा रही है। वहीं दुनियाभर में उभरते बाजारों की मुद्राओं को नुकसान उठाना पड़ा रहा है।