जब भी भारतीय वीरांगनाओं का नाम लिया जाता है, उसमें झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम सबसे आगे आता है। उन्हें भारत की सबसे बड़ी वीरांगना माना जाता है, जिन्होंने अंग्रेजों का जमकर मुकाबला किया। हालांकि बहुत कम लोग ही जानते हैं कि देश में एक ऐसी भी वीरांगना रहीं हैं, जिसका नाम रानी लक्ष्मीबाई से भी पहले आता है। इस वीरांगना को भारत की दूसरी लक्ष्मीबाई भी कहा जाता है, वह दलित थीं।
इनका नाम झलकारी बाई है। 1857 की क्रांति के दौरान उन्होंने झांसी के युद्ध में भारतीय बगावत के समय महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आपको जानकर हैरानी होगी कि झलकारी बाई, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की महिला सेना में ही सैनिक थीं। उनका जन्म एक गरीब कोरी परिवार में हुआ था। वह रानी लक्ष्मीबाई की सेना में एक आम सैनिक की तरह भर्ती हुईं थीं। उनमें युद्ध के साथ ही अन्य मसलों पर भी असाधारण योग्यताओं थी, इसी के दम पर वह रानी लक्ष्मीबाई की विशेष सलाहकार बनीं। कहा जाता है कि रानी लक्ष्मीबाई के महत्वपूर्ण निर्णयों में झलकारी बाई की अहम भूमिका रहती थी।
झलकारीबाई खुद रानी लक्ष्मीबाई बनकर लडती रहीं और जनरल रोज की सेना उनके झांसे में आकर उन पर प्रहार करने में लगी रही। काफी देर बाद उन्हें पता चला की वह रानी लक्ष्मीबाई नही हैं। झलकारी बाई की इस महानता को बुंदेलखंड में रानी लक्ष्मीबाई के बराबर सम्मान दिया जाता है। दलित के तौर पर उनकी महानता और हिम्मत ने उत्तर भारत में दलितों के जीवन पर काफी सकारात्मक प्रभाव डाला। उनकी मौत कैसे हुई थी, इतिहास में इसे लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। कुछ इतिहासकारों ने लिखा है कि ब्रिटिश सेना द्वारा झलकारी बाई को फांसी दे दी गई थी। वहीं कुछ जगहों पर जिक्र किया गया है कि वह युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुई थीं। कुछ जगहों पर अंग्रेजों द्वारा झलकारीबाई को तोप से उड़ाने का जिक्र किया गया है।